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सावधान! जनता मूड में है

Ek Gullak Aisa Bhi
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पिछले कई दशकों से राजनेता ये शिकायत करते आए थे कि स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से वह कुछ कर नहीं पाते। इसलिए अब जनता ने फैसला कर लिया है की वो इनकी इस शिकायत को दूर करके देखेगी इसलिए पहले U.P में अखिलेश यादव को फिर नरेंद्र मोदी को जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। और अब वही जनादेश अरविंद केजरीवाल की नई नवेली पार्टी को (कथाकथित एक और मौका) दिया है। ऐसा बहुमत, जो नाहीं केजरीवाल जी ने और नाहीं उनकी पार्टी ने सोचा था। आप पार्टी के तमाम सर्वे और आंकड़ों से भी आगे की यह जीत हमारे लोकतंत्र में आ रहे वैचारिक परिवर्तनों की ओर भी संकेत है।
अब वोटर ने तय कर लिया है कि वह पूर्ण बहुमत से कम कुछ नहीं देंगे| अब ऐसे में  विपक्ष का क्या होगा, वह कैसे चलेगा, इस सोच का जिम्मा उसका नहीं है, क्योंकि वह विपक्ष के लिए वोट नहीं करेगा। भाजपा दिल्ली चुनाव में अपना पूरा फोकस जिस नई पीढ़ी और युवाओं पर कर रही थी, उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे किसी पार्टी के बंधुआ नहीं हैं।
मै कोई चुनावी विश्लेषक नहीं हूँ लेकिन मैने इस चुनाव के दौरान मोदी जी और केजरीवाल जी दोनों के भाषण सुने मोदी जी  प्रधानमंत्री है उनके ऊपर पुरे देश की जिम्मेदारी है साथ ही साथ विदेश नीति और पडोसी देशो से सम्बन्धो की जिम्मेदारी है और वो ये बात अच्छी तरह समझते है लेकिन वो ये नहीं समझ पाये की दिल्ली पूरा देश नहीं एक राज्य है और राज्य की अपनी मूल समस्याएं होती है|
शायद इसीलिए मोदी जी हर भाषण में अर्थव्यवस्था की बात कर रहे थे, ओबामा की बात कर रहे थे, पडोसी देशो की बात कर रहे थे, केजरीवाल को कोस रहे थे। जबकि वही दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल मुफ्त बिजली पानी, झुग्गी झोपड़ियो और लोकल मुद्दो की बात कर रहे थे, अपनी की गयी गलतिओं की माफ़ी मांग रहे थे एक ऐसी भाषा बोल रहे थे, जो जनता तक सीधी जाती है। पहली बार नरेंद्र मोदी हारे हैं अपने कुशल संवाद में, प्रबंधन में और जनता के मनोविज्ञान को समझने में।
इस बात में दो राय नहीं कि दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 67 सीटें जीतकर ‘आप’ ने एक इतिहास रचा है, जिसके लिए अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी बधाई के पात्र है और साथ ही इसलिए भी कि उन्होंने भारत कि परंपरागत राजनीती को बदलने क़ी एक सफल कोशिश क़ी जिसकी वजह से राजनीती से मोह भंग कर चुके युवा फिर से राजनीती में दिलचस्पी लेने लगे|
लेकिन इन सब के बावजूद इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा जितना बड़ा समर्थन उतनी बड़ी जिम्मेदारी| क्युकि वर्ष 2004 में ऐसा ही विश्वास सोनिया गांधी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ रही कांग्रेस पर जताया था जनता ने, तब सबको लगा था कि कांग्रेस के दिन फिर आ गये लेकिन उस विश्वास पर खरा न उतर पाने पर आज कांग्रेस का क्या हाल किया जनता ने ये सबने देखा|
इसलिए केजरीवाल जी को ये हमेशा याद रखना होगा कि उनकी पार्टी को इतना बड़ा जनमत क्यों मिला है..और साथ ही ये भी याद रखना होगा कि अगर वो एक लम्बी पारी खेलने राजनीती में उतरे है और अपनी पार्टी को राष्ट्रिय स्तर पर देखना चाहते है तो अभी तक जितनी मेहनत उन्होंने की है वो 1% मात्र है..
फिलहाल तो मै एक भारतीय नागरिक और दिल्ली का निवासी होने कि हैसियत से दिल्ली वालो को उनके एक स्थायी और जोशीली सरकार चुनने के फैसले को अनेक अनेक धन्यवाद और शुभकामनाये देता हूँ क्युकि इन चुनाओ में जीता – हारा कोई भी हो लेकिन जनता ने एक स्पष्ट सन्देश दिया सभी पार्टियो को कि – सावधान हो जाओ हम मूड में है!

पिछले कई दशकों से राजनेता ये शिकायत करते आए थे कि स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से वह कुछ कर नहीं पाते। इसलिए अब जनता ने फैसला कर लिया है की वो इनकी इस शिकायत को दूर करके देखेगी इसलिए पहले यू. पी. में अखिलेश यादव को फिर नरेंद्र मोदी को जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। और अब वही जनादेश अरविंद केजरीवाल की नई नवेली पार्टी को (कथाकथित एक और मौका) दिया है। ऐसा बहुमत, जो नाहीं केजरीवाल जी ने और नाहीं उनकी पार्टी ने सोचा था। आप पार्टी के तमाम सर्वे और आंकड़ों से भी आगे की यह जीत हमारे लोकतंत्र में आ रहे वैचारिक परिवर्तनों की ओर भी संकेत है।

अब वोटर ने तय कर लिया है कि वह पूर्ण बहुमत से कम कुछ नहीं देंगे| अब ऐसे में  विपक्ष का क्या होगा, वह कैसे चलेगा, इस सोच का जिम्मा उसका नहीं है, क्योंकि वह विपक्ष के लिए वोट नहीं करेगा। भाजपा दिल्ली चुनाव में अपना पूरा फोकस जिस नई पीढ़ी और युवाओं पर कर रही थी, उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे किसी पार्टी के बंधुआ नहीं हैं।

janta rocks in delhi

मै कोई चुनावी विश्लेषक नहीं हूँ लेकिन मैने इस चुनाव के दौरान मोदी जी और केजरीवाल जी दोनों के भाषण सुने मोदी जी  प्रधानमंत्री है उनके ऊपर पुरे देश की जिम्मेदारी है साथ ही साथ विदेश नीति और पडोसी देशो से सम्बन्धो की जिम्मेदारी है और वो ये बात अच्छी तरह समझते है लेकिन वो ये नहीं समझ पाये की दिल्ली पूरा देश नहीं एक राज्य है और राज्य की अपनी मूल समस्याएं होती है|

शायद इसीलिए मोदी जी हर भाषण में अर्थव्यवस्था की बात कर रहे थे, ओबामा की बात कर रहे थे, पडोसी देशो की बात कर रहे थे, केजरीवाल को कोस रहे थे। जबकि वही दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल मुफ्त बिजली पानी, झुग्गी झोपड़ियो और लोकल मुद्दो की बात कर रहे थे, अपनी की गयी गलतिओं की माफ़ी मांग रहे थे एक ऐसी भाषा बोल रहे थे, जो जनता तक सीधी जाती है। पहली बार नरेंद्र मोदी हारे हैं अपने कुशल संवाद में, प्रबंधन में और जनता के मनोविज्ञान को समझने में।

इस बात में दो राय नहीं कि दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 67 सीटें जीतकर ‘आप’ ने एक इतिहास रचा है, जिसके लिए अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी बधाई के पात्र है और साथ ही इसलिए भी कि उन्होंने भारत कि परंपरागत राजनीती को बदलने क़ी एक सफल कोशिश क़ी जिसकी वजह से राजनीती से मोह भंग कर चुके युवा फिर से राजनीती में दिलचस्पी लेने लगे|

लेकिन इन सब के बावजूद इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा जितना बड़ा समर्थन उतनी बड़ी जिम्मेदारी| क्युकि वर्ष 2004 में ऐसा ही विश्वास सोनिया गांधी के नेतृत्व में लोकसभा का चुनाव लड़ रही कांग्रेस पर जताया था जनता ने, तब सबको लगा था कि कांग्रेस के दिन फिर आ गये लेकिन उस विश्वास पर खरा न उतर पाने पर आज कांग्रेस का क्या हाल किया जनता ने ये सबने देखा|

इसलिए केजरीवाल जी को ये हमेशा याद रखना होगा कि उनकी पार्टी को इतना बड़ा जनमत क्यों मिला है..और साथ ही ये भी याद रखना होगा कि अगर वो एक लम्बी पारी खेलने राजनीती में उतरे है और अपनी पार्टी को राष्ट्रिय स्तर पर देखना चाहते है तो अभी तक जितनी मेहनत उन्होंने की है वो 1% मात्र है..

फिलहाल तो मै एक भारतीय नागरिक और दिल्ली का निवासी होने कि हैसियत से दिल्ली वालो को उनके एक स्थायी और जोशीली सरकार चुनने के फैसले को अनेक अनेक धन्यवाद और शुभकामनाये देता हूँ क्युकि इन चुनाओ में जीता – हारा कोई भी हो लेकिन जनता ने एक स्पष्ट सन्देश दिया सभी पार्टियो को कि – सावधान हो जाओ हम मूड में है!

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